Monday, March 10, 2025
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डीडीजीएस के निर्यात से देश का फायदा

भारत ने हाल के वर्षों में एथेनॉल उत्पादन के उपोत्पाद डीडीजीएस (डिस्टिलर्स ड्राइड ग्रेन विद सॉल्यूबल्स) के डॉ. सी. के. जैन निर्यात में उल्लेखनीय उछाल देखा है। हालांकि इस वृद्धि के बावजूद, उद्योग को DDGS निर्यात की कीमतों में निरंतर गिरावट को लेकर चिंता का सामना करना पड़ रहा है। DDGS निर्यात में उछाल ने इसे पशुपालन क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण घटक बना दिया है, जो पशुधन और मुर्गी पालन के लिए प्रोटीन और ऊर्जा का स्रोत प्रदान करता है।

ग्रेन एथेनॉल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (जेमा) के आंकड़ों के अनुसार, मक्का DDGS के निर्यात की मात्रा में पिछले तीन वर्षों में वृद्धि देखी गई है। 2022 में, मक्का डीडीजीएस का निर्यात केवल 30 मीट्रिक टन (एमटी) था, लेकिन 2023 तक यह आंकड़ा बढ़कर 20,847 मीट्रिक टन हो गया। 2024 में, निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और यह 287,593 मीट्रिक टन हो गया। चावल डीडीजीएस निर्यात में भी वृद्धि हुई, जो 2022 में 12,064 मीट्रिक टन से बढ़कर 2024 में 60,296 मीट्रिक टन हो गया, हालांकि मात्रा के मामले में यह अभी भी मक्का डीडीजीएस से पीछे है।

मक्का और चावल डीडीजीएस के निर्यात मूल्यों में अंतर देखा गया है। मक्का डीडीजीएस की कीमतें 2022 में 239 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन से गिरकर 2024 में 220 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन हो गई हैं। दूसरी ओर, चावल डीडीजीएस की कीमतें 2022 में 435 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन से गिरकर 2024 में 324 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन हो गई हैं।

भारत का मक्का और चावल डीडीजीएस का बढ़ता निर्यात देश को वैश्विक पशु पोषण बाजार में एक प्रमुख लीडर के रूप में स्थापित कर रहा है। वर्ष 2024 में भारत ने लगभग 287,593 मीट्रिक टन मक्का डीडीजीएस का निर्यात किया, जिससे वैश्विक बाजारों में लागत प्रभावी प्रोटीन की आपूर्ति में इसकी भूमिका मजबूत हुई। मक्का डीडीजीएस उत्पादन और निर्यात मेंभारत की वृद्धि से वैश्विक पशुपालन उद्योग और निर्यातक के रूप में देश की स्थिति दोनों को लाभ हो रहा है।

गन्ने की कमी से मार्च में ही बंद हो सकती हैं मिलें

पेराई सीजन 2024-25 में देश के दोनों सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्यों उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में गन्ने की कमी के चलते अधिकांश चीनी मिलें मार्च में ही बंद जाएंगी। उत्तर प्रदेश में कई चीनी मिलों को अभी से गन्ने की आपूर्ति कम पड़ने लगी है।

साथ ही राज्य की उत्तराखंड से लगी कुछ चीनी मिलें परोक्ष रूप से गन्ने की खरीद 400 रुपये प्रति क्विंटल पर करने लगी हैं। गुड़ और खांडसारी उद्योग में भी गन्ने की कीमत 400 रुपये प्रति क्विंटल पर जाने की स्थिति बन रही है। इसकी वजह राज्य में गन्ने में टॉप शूट बोरर और रेड रॉट की बीमारी के चलते उत्पादकता में 15 से 20 फीसदी तक की गिरावट आना है। इस स्थिति में उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों के बीच गन्ने के लिए प्राइस वार की स्थिति बना सकती है। हालांकि राज्य सरकार ने अभी तक चालू पेराई सीजन के लिए गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) तय नहीं किया है। राज्य में चीनी मिलें अभी पिछले सीजन का 370 रुपये प्रति क्विंवटल का एसएपी ही किसानों को दे रही हैं।

वहीं महाराष्ट्र और कर्नाटक में गन्ने की फसल की ग्रोथ रुक गई है और वहां फ्लावरिंग की स्टेज आ गयी है जिसके चलते गन्ने की उत्पादकता और उसमें चीनी की रिकवरी दोनों पर असर पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश के शामली जिले में हंस हेरिटेज जैगरी एंड फार्म प्रॉड्यूस के नाम से गुड़ यूनिट चलाने वाले के पी सिंह ने रूरल वॉयस को बताया कि इस साल गन्ने की उपज पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 15 से 20 फीसदी कम है। साथ ही रिकवरी में भी करीब एक फीसदी तक की कमी आई है। के पी सिंह कहते हैं कि बरेली से लेकर शामली तक गन्ने की फसल की यही स्थिति है। के पी सिंह बलरामपुर चीनी ग्रुप के टेक्नीकल हेड रहे हैं और अभी शामली जिले में ऊन के पास ऑटोमेटेट और एडवांस टेक्नोलॉजी पर आधारित गुड़ संयंत्र चला रहे हैं। वह कहते हैं कि आने वाले दिनों में हमें भी गन्ने के लिए 400 रुपये प्रति क्विंटल तक की कीमत देनी पड़ सकती है। पिछले साल उनकी गुड़ की रिकवरी 15 फीसदी से अधिक थी लेकिन इस साल यह

अब 14 फीसदी पर पहुंची है। वह अभी गुड़ की बिक्री 33 रुपये किलो पर कर रहे हैं। वहीं शामली जिले के भैंसवाल गांव के प्रगतिशील किसान और जिला पंचायत सदस्य उमेश पंवार का कहना है कि इस साल बीमारी के चलते गन्ने की उत्पादकता 20 फीसदी तक कम है और शामली स्थित चीनी मिल को छोड़कर जिले की बाकी चीनी मिलें मार्च में ही बंद हो जाएंगी क्योंकि गन्ना कम है। शामली मिल देरी से चली थी इसलिए वह अप्रैल के मध्य तक चल सकती है।

महाराष्ट्र के चीनी उद्योग के एक पदाधिकारी ने बताया कि महाराष्ट्र और कर्नाटक में गन्ने की फसल समयपूर्व फ्लावरिंग स्टेज में चली गई है। इस स्थिति में जहां फसल की ग्रोथ बंद हो जाती है वहीं उसमें सुक्रोज की मात्रा भी कम हो जाती है और गन्ने का वजन कम हो जाता है। वहीं महाराष्ट्र की एक सहकारी चीनी मिल के पदाधिकारी का कहना है कि अर्ली फ्लावरिंग की स्थिति कई जगह दिसंबर में ही आ गई थी। साथ ही इस साल महाराष्ट्र में चीनी मिलें देरी से चली क्योंकि मिलों में पेराई राज्य विधान सभा चुनाव के बाद ही शुरू हुई है। गन्ने की फसल की कमजोर स्थिति के चलते देरी के बावजूद कुछ चीनी मिलें फरवरी में ही बंद हो जाएंगी।

नेशनल फेडरेशन ऑफ कोआपरेटिव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड ने चालू पेराई सीजन (2024-25) के लिए चीनी उत्पादन का अनुमान घटाकर 270 लाख टन कर दिया है। पिछले साल चीनी का उत्पादन 319 लाख टन रहा था। पिछले सीजन के

अंत में 80 लाख टन चीनी का बकाया स्टॉक था। जबकि चालू साल में चीनी की खपत 295 लाख टन रहने का अनुमान है। सरकार ने हाल ही में 10 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दी है। ऐसे में चालू सीजन के अंत में देश में चीनी का करीब 45 लाख टन का बकाया स्टॉक होगा।

महाराष्ट्र में फसल के जल्दी फ्लावरिंग

स्टेज में जाने की वजह 2023-24 में लंबे समय तक सूखे की स्थिति और उसके बाद अक्टूबर में अधिक बारिश को माना जा रहा है। यानी मौसम में बदलाव का असर गन्ने की फसल पर पड़ा है। वहीं उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक प्रचलित गन्ना किस्म सीओ-0238 में रेड रॉट और टॉप शूट बोरर की बीमारी उत्पादकता में गिरावट की बड़ी वजह है। कई साल तक राज्य में किसानों और चीनी उद्योग के लिए बेहतर परिणाम देने वाली इस किस्म में रोग आने की प्रवृत्ति काफी अधिक हो गयी है जबकि इसकी जगह लेने वाली किस्में सीओ-0118, सीओ-14201, सीओ-15023 और सीओएस-13235 किसानों के बीच अभी तक लोकप्रिय नहीं सकी हैं क्योंकि इनमें कुछ में रिकवरी बेहतर तो उत्पादकता कम है। सीओ-0238 की जगह अभी तक राज्य के गन्ना शोध संस्थान और आईसीएआर के संस्थान कोई बेहतर किस्म किसानों को नहीं दे सके हैं और अगर यही स्थिति रहती है तो गन्ने में कपास जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है जहां उत्पादन में भारत पहले स्थान पर पहुंच कर अब आयातक की स्थिति में आ गया

Sugar Times Team
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