बजट में किसानों और एग्रीकल्चर सेक्टर के लिए कई नई स्कीमों का ऐलान किया है। कृषि क्षेत्र के लिए बजट में 1.71 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। किसान क्रेडिट कार्ड से लोन की सीमा तीन लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये कर दी गई। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने किसानों के लिए ‘पीएम धन धान्य कृषि योजना’ का ऐलान किया। इस योजना का मकसद कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए नीति तैयार करना है। इस स्कीम के तहत देश के उन 100 जिलों पर फोकस किया जाएगा, जहां कृषि उत्पादन कम है। इस योजना के साथ ही मखाना किसानों के लिए एक विशेष बोर्ड बनाने, किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा बढ़ाने, उन्नत बीज मिशन और कपास उत्पादन के लिए पांच साल की योजना लागू करने की घोषणा की गई है।
दाल उत्पादकों को प्रोत्साहन
तुअर, उड़द और मसूर के उत्पादन को बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार की एजेंसियां अगले चार वर्षों तक इनकी खरीद करेंगी। कहा जा रहा है कि इससे दाल उत्पादक किसानों को प्रोत्साहन मिलेगा और घरेलू बाजार में कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। यूं कहें कि बजट में कृषि के उत्पादन में उत्पादकता और लचीलापन लाने पर पूरा फोकस किया गया है जो हर बार की तरह इस बार भी बजट में देखने को मिला। लेकिन कृषि क्षेत्र के लिए वित्त मंत्री ने वैसा कोई ठोस ऐलान नहीं किया, जिससे किसानों को सीधा फायदा उनकी जेब में आता दिखे। वित्तमंत्री ने कहा कि ये बजट ग्रामीण, युवाओं और छोटे किसानों पर फोकस करते हुए पेश किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार 100 जिलों में कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देने का काम करेगी।
आय बढ़ाने का लक्ष्य अधूरा
समाज के हर वर्ग की आय साल-दर-साल बढ़ रही है लेकिन किसान कर्ज के जंजाल से बाहर नहीं निकल पा रहा है। किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य अभी कई चुनौतियों के बीच संघर्ष कर रहा है। भारत के ज्यादातर किसान अब अपने बच्चों को खेती की जिम्मेदारीनहीं सौंपना चाहते हैं। भारतीय कृषि व्यवस्था में अपनी पूरी जिंदगी खपाने वाले किसान आज खेती को घाटे का सौदा बताते हैं।
आखिर क्या कारण है कि तमाम प्रयासों के बावजूद कृषि क्षेत्र की समस्याओं का समाधान सरकार नहीं कर पाई है। इस पर गंभीर चिंतन की जरूरत है। जबकि आज भारत विश्व की टॉप पांच सबसे मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है। लेकिन आजादी के बाद योजनाबद्ध तरीके से कृषि में निवेश के बाद भी भारतीय किसान दूसरे देशों के मुकाबले काफी पिछड़ा हुआ है। देश की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता वैश्विक औसत से कम है। दूसरी तरफ देशभर में किसानों के असंतोष का सबसे बड़ा कारण उनकी उपज का सही मूल्य न मिलना रहा है और यही उनकी सबसे बड़ी समस्या है। किसानों की समस्याएं कोई नई नहीं हैं, लेकिन उनके समाधान की ईमानदार कोशिशें होती कभी नजर नहीं आई।
छोटे किसान खाली हाथ
कहने को बजट में कृषि सेक्टर के लिए योजनाओं का अंबार है, लेकिन छोटे किसानों के लिए समस्याओं का समाधान होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। इस समस्या पर कोई गौर होता नहीं दिख रहा कि किसानों को उनका बकाया कैसे दिलवाया जाए या उनकी आर्थिक सेहत को कैसे ठीक किया जाए। भारत के ज्यादातर किसानों के पास कृषि में निवेश के लिए पूंजी का अभाव है। आज भी देश के ज्यादातर किसानों को व्यावहारिक रूप में संस्थागत ऋण सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता। कई बार किसानों के पास इतनी भी पूंजी नहीं होती कि वे बीज, खाद, सिंचाई जैसी बुनियादी चीजों का भी प्रबंध कर सकें। इसका परिणाम यह होता है कि किसान समय से फसलों का उत्पादन नहीं कर पाते। ऐसे में सवाल फिर यही खड़ा होता है कि किसानों के लिए ये बजट लाभदायक कैसे हो सकता है।