भारत में फसल अवशेषों का प्रबंधन बड़ी चुनौती रहा है, पराली जलाने की घटनाएं सुर्खियां रही हैं। आज यही फसल अवशेष ऊर्जा का स्रोत बन गए हैं। बड़ी मात्रा में पैदा होने वाले कृषि अवशेष को हरित ऊर्जा में बदला जा रहा है। चीन के बाद दूसरे नंबर पर, भारत हर साल 900 मिलियन मीट्रिक टन एग्रीकल्चर बायोमास का उत्पादन करता है। सरकार की नीतियों में बदलाव और निजी क्षेत्रों की भागीदारी से कृषि बायोमास से ऊर्जा उत्पादन में तेजी आई है। कृषि अवशेषों से ऊर्जा बनाने वाली इकाइयां ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित हो रही हैं। ऊर्जा खपत में विश्व में तीसरे नंबर पर भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में बायोएनर्जी अहम रोल निभा सकती है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बायोमास का बाजार वर्ष 2030-31 तक करीब 32,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। इस बढ़ते बाजार का परिणाम है कि अन्नदाता को अब ऊर्जादाता के रूप में पहचान मिल रही है।
क्या है कृषि बायोमास ?
बायोमास एक ऑर्गेनिक पदार्थ है, जैसे फसल अवशेष, जंगल के अवशेष, शहरों का ठोस कूड़ा आदि। इसे ऊर्जा में बदला जाता है। भारत में बड़ी मात्रा में बायोमास उपलब्ध है। इससे बड़ी मात्रा में ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। भारत में हर साल 900 मिलियन मीट्रिक टन एग्रीकल्चर बायोमास का उत्पादन होता है, जबकि सरप्लस बायोमास 230 मिलियन मीट्रिक टन है। धान की पराली, धान की भूसी, बगास, कॉटन का डंठल आदि को बायोमास के तौर पर उपयोग किया जाता है। बायोमास जैव ऊर्जा का एक बड़ा साधन है। भारत की ऊर्जा जरूरतों को इससे पूरा किया जा सकता है। भारत का बायोमास बाजार हरित ऊर्जा उत्पादन करने वाली अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित कर रहा है।
पेलेट्स और ब्रिकेट्स
ताप से ऊर्जा उत्पादन करने वाली इकाइयों में कोयले के साथ कृषि बायोमास से बने पेलेट्स और ब्रिकेट्स का मिश्रण अनिवार्य करने से इसके व्यापार और उत्पादन में तेजी आई है। इसमें पराली और अन्य कृषि अवशेषों से छोटे-छोटे ठोस टुकड़े बनाए जाते हैं, जिन्हें थर्मल पावर प्लांट्स, ईट-भट्ठों आदि में कोयले के साथ मिश्रित करके उपयोग किया जाता है। केंद्र सरकार ने थर्मल पॉवर प्लांट्स में कोयले के साथ 5 फीसदी पेलेट्स और ब्रिकेट्स की मिक्सिंग करके जलाना अनिवार्य कर दिया है, जिसे 7% तक बढ़ाया जा सकता है।
कृषि अवशेषों से एथेनॉल
देश में वर्ष 2014 में पेट्रोल में एथेनॉल मिश्रण 1.53 प्रतिशत तक किया जा सकता था, जो वर्ष 2024 में 15 प्रतिशत कर दिया गया। मक्के से एथेनॉल बनाने पर 9.72 रुपये, 8.46 रुपये चावल से, 6.87 रुपये प्रति लीटर शीरे से सरकार की तरफ से प्रोत्साहन राशि दी जाती है। इसी का नतीजा है कि 2021-22 में मक्के से एथेनॉल बनाने का प्रतिशत शून्य होने के बावजूद, वर्ष 2023-24 में यह 36 प्रतिशत तक बढ़ गया।
बायोडीजल से किसानों की कमाई
भारत में वर्ष 2024 में जितना बायोडीजल बनाया गया, उसका 35 प्रतिशत उपयोग हो चुके खाद्य तेल से बना था। तेल कंपनियों द्वारा बायोडीजल की खरीद 2015-16 के दौरान 1.1 करोड़ लीटर थी, जो 2019-20 में 10.56 करोड़ लीटर हो गई। भारत में बायोडीजल उत्पादन 2023 में 200 मिलियन लीटर था, जो 2024 के अंत तक 226 मिलियन लीटर पहुंचने की उम्मीद है। भारत में 2030 तक डीजल में 5 प्रतिशत बायोडीजल मिश्रण का लक्ष्य है, जिसके लिए सालाना 450 करोड़ लीटर बायोडीजल की आवश्यकता होगी