गन्ना किसान अब पारंपरिक तरीकों को छोड़कर उन्नत तकनीकों और इंटरक्रॉपिंग से अपनी आय बढ़ा सकते हैं। गन्ना, धान और गेहूं की खेती करने वाले किसान अक्सर अप्रैल में गेहूं की कटाई के बाद गन्ने की बुवाई करते हैं, जिससे बसंतकालीन गन्ने की समय से बुवाई नहीं हो पाती और पैदावार में कमी आती है। नई तकनीकों से गन्ने की खेती में लागत को कम करके अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। इंटरक्रॉपिंग से किसानों को देर से भुगतान की समस्या से राहत मिलेगी और प्रति एकड़ आय में बढ़ोतरी होगी।
बेहतर जमाव वाली बुवाई तकनीक
संशोधित ट्रेंच ओपनर विधिः इस विधि में 25-30 सेमी गहरा और 30 सेमी चौड़ा ट्रेंच तैयार किया जाता है। गन्ने की बुवाई के बाद केवल 2-3 सेमी मिट्टी डाली जाती है, जिससे जमाव दर 60-70 परसेंट तक होती है। नमी की कमी होने पर तुरंत सिंचाई करने की सुविधा रहती है।
बड चिप तकनीकः इस तकनीक में पहले गन्ने की नर्सरी उगाई जाती है। मशीन द्वारा गन्ने के बड (आंख) निकालकर उन्हें उपचारित किया जाता है और प्लास्टिक ट्रे में रखा जाता है। ट्रे को वर्मी कंपोस्ट या कोकोपिट से भरा जाता है। 4-5 सप्ताह बाद जब पौध तैयार हो जाती है, तो इसे मुख्य खेत में रोपित किया जाता है। इस विधि से बीज की बचत होती है और स्वस्थ पौध विकसित होती है।
इंटरक्रॉपिंग से अधिक लाभ
बसंतकालीन गन्ने की खेती के साथ अंतरवर्ती फसलें अपनाकर किसान अपनी आय में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकते हैं। गन्ने की बुवाई के शुरुआती 90 से 120 दिनों तक खेत में पर्याप्त स्थान और धूप मिलती है, जिससे किसान बिना गन्ने की उपज प्रभावित किए अन्य फसलें उगा सकते हैं। इन विधियों से गन्ने की मुख्य फसल के साथ कम अवधि वाली फसलों की खेती संभव होती है, जिससे किसानों को 12 महीने इंतजार करने की बजाय 3-4 महीने में ही अतिरिक्त आय मिलने लगती है। मूंग, उड़द, लोबिया या फ्रेंच बीन की इंटरक्रॉपिंग से गन्ने की फसल को अतिरिक्त पोषक तत्व मिलते हैं। इन फसलों की कटाई के बाद पौधों को हरी अवस्था में ही भूमि में दबा दिया जाता है, जिससे 12-15 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति एकड़ की बचत होती है। नई तकनीकों और इंटरक्रॉपिंग को अपनाकर किसान अपनी लागत को कम कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। गन्ना उत्पादक किसानों के लिए यह जरूरी है कि वे उन्नत विधियों को अपनाकर अपनी कृषि आय को बढ़ाएं।