प्रदेश में सड़क पर किए गए परीक्षण में बिदुमेन के विकल्प के रूप में गन्ने के मोलासेस के उपयोग के सफल परिणाम मिले हैं। आईआईटी रुड़की के विशेषज्ञों द्वारा विकसित शोध के अनुसार, मुजफ्फरनगर को शामली से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग के 650 मीटर हिस्से के निर्माण में बायो बिटुमेन का उपयोग किया गया। नवंबर 2022 में निर्मित रोड का पिछले मानसून के मौसम को झेलने के बाद जांच में वांछित परिणाम मिला है। बायो बिटुमेन का उपयोग उसी तरह का स्थायित्व और शेल्फ लाइफ प्रदान करने के लिए किया जा सकता है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय और उत्तर प्रदेश में लोक निर्माण विभाग दोनों ने NH 709 AD (पानीपत से खटीमा राजमार्ग) के एक सेक्शन पर ट्रायल रन किया है और ऐसे और खंडों की पहचान करने जा रहे हैं, जहाँ विकल्प के रूप में बायो बिटुमेन का सहारा लेने से पहले इस फार्मूले का प्रयोग के तौर पर किया जा सकता है।
इंजीनियर-इन-चीफ जितेंद्र कुमार बंगा ने कहा कि अगस्त में आईआईटी रुड़की के सदस्य, जो गुड़-आधारित बायो बिटुमेन की शोध लेकर आए है, हमारे इंजीनियरों को सड़क निर्माण से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षण देंगे। हम विकल्प के इस्तेमाल की संभावना तलाशेंगे, लेकिन अलग-अलग परिस्थितियों में और परीक्षण करने के बाद ही अंतिम फैसला लेंगे। आईआईटी रुड़की के असिस्टेंट प्रोफेसर निखिल साबू ने पीएचडी फेलो धीरज मेहता के साथ मिलकर यह फार्मूला तैयार किया है। मुजफ्फरनगर-शामली सेक्शन में पहली बार प्रयोग किया गया था, इसके अनुकूल परिणाम हैं।
उन्होंने कहा कि हम पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में बायो बिटुमेन की मदद से दो और राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण के लिए राजमार्ग मंत्रालय से बातचीत कर रहे हैं। मैं लखनऊ में आगामी प्रशिक्षण सत्र के दौरान पीडब्ल्यूडी इंजीनियरों के साथ इस तकनीक पर चर्चा के लिए उत्सुक हूं। लचीले फुटपाथ वाली एक किलोमीटर सड़क के निर्माण की लागत 3 करोड़ रुपये से 4 करोड़ रुपये के बीच है, जिसमें से बिटुमेन के साथ सब-बेस की परत बिछाने पर होने वाला खर्च 60 प्रतिशत है। बायो बिटुमेन के उपयोग से कुल परियोजना लागत में काफी कमी आने की उम्मीद है। साथ ही कार्बन फुटप्रिंट में भी कमी आएगी।