Monday, October 28, 2024
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को. 0238 को अलविदा कहने का समय

देश की प्रमुख नकदी फसल गन्ना की अद्भुत किस्म के रूप में को. 0238 (करण-4) चीनी उद्योग के इतिहास मनोज कुमार में अब तक सबसे ज्यादा उपज देने वाली किस्म साबित हुई है। यह प्रचलित किस्मों में उच्च सुक्रोज की किस्म है। को. लख. 8102 एवं को. 775 के संकरण से इसे गन्ना प्रजनन संस्थान करनाल में श्री बख्शी राम द्वारा तैयार किया गया था। इस किस्म को पंजाब, हरियाणा, उत्तर मध्य एवं पश्चिमी उ.प्र. के लिए जारी किया गया था। अन्य क्षेत्र के सापेक्ष पश्चिमी एंव मध्य उत्तर प्रदेश के किसानों के बीच यह इतनी लोकपिय हुई कि इस क्षेत्र में इस किस्म का गबा क्षेत्रफल 97-98 प्रतिशत तक पहुंच गया। इसका मुख्य कारण को 0238 की अधिक पैदावार एवं इसमें सुक्रोज की अधिकता है। साथ ही इस किस्म में इसकी गुणवत्ता का अच्छा समन्वय होने से इस किस्म को किसानों. चीनी उद्योग एवं गुड़ उद्योग द्वारा हाथो हाथ लिया गया। जिससे इस किस्म का तेजी से विस्तार हुआ। इस किस्म की मांग आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र एवं तमिलनाडू में भी की गयी, जो कि अप्रत्याशित था। क्योकि संभवतः ऐसा प्रथम बार था जब उष्णकटिबंधीय भारत में उपोष्णकटिबंधीय गन्ना किस्म का विस्तार हुआ।

चीनी उद्योग को फायदे का सौदा बनाने में को. 0238 के योगदान को कत्तई भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। पेराई सत्र 2009-10 में उ.प्र. की स्थापित चीनी मिलों की औसत चीनी रिकवरी दर 9.13 प्रतिशत थी। वहीं पेराई संत्र 2022-23 में जब को. 0238 क्षेत्रफल अधिकतम था तब उ.प्र. में स्थापित चीनी मिलों का औसत चीनी परता 11.47 प्रतिशत था। पेराई संत्र 2009 में उ.प्र. चीनी मिलों की पेराई क्षमता 772365 टीसीडी थी। तब पेराई सत्र 2009-10 में प्रदेश में गन्ना क्षेत्रफल 1787855 (हे.) व गन्ना उत्पादन 10513 लाख कु. था। प्रदेश की चीनी मिलों द्वारा 2009-10 में 5673.37, ला. कु. गन्ना पेराई की गई। पेराई सत्र 2022-23 में पेराई क्षमता 807275 टी. सी.डी. थी तब गद्मा को. लख. 8102 एवं को. 775 के संकरण से इसे गन्ना प्रजनन संस्थान करनाल में श्री बख्शी राम द्वारा तैयार किया गया था। इस किस्म को पंजाब, हरियाणा, उत्तर मध्य एवं पश्चिमी उ.प्र. के लिए जारी किया गया था।

क्षेत्रफल 2852500 (हे.) व गन्ना उत्पादन 23946. लाख कु. था तथा चीनी मिलों द्वारा 10985, लाख कु. गन्ना पेराई की गई। स्वाभाविक रूप से चीनी उद्योग जो कि इस किस्म के आने से पहले घाटे का सौदा माना जाने लगा था। किसानों के गन्ना मूल्य भुगतान में इस कारण रूकावटें आयी।

Co 0238

जिससे किसानों में असंतोष व्याप्त हुआ। परिणाम स्वरूप माननीय न्यायालायों में गन्ना मूल्य भुगतान को लेकर अनेक वाद योजित किये गये। वहीं दूसरी ओर चीनी उद्योग से जुड़े उद्योगपति इस उद्योग को घाटे का सौदा मानकर विमुख होने लगे। फलस्वरूप अनेक चीनी मिलें बन्दी की कगार पर आ गयी। इसी कड़ी में वर्ष 2010 में उ.प्र. चीनी मिल निगम को अपनी 21 चीनी मिलें निजी क्षेत्र को बेचनी पड़ी। चीनी उद्योग से जुड़े जानकार बताते हैं कि को. 0238 ने मृतप्राय गन्ना उद्योग को संजीवनी दी एवं चीनी उद्योग की गन्ना मूल्य भुगतान क्षमता को सुदृढ़ किया।

वर्तमान चीनी उद्योग के परिदृश्य में को. 0238 की अहम भूमिका रही है। लगभग एक दशक तक अपनी गौरव गाथा से चीनी उद्योग को अविभूत करने के बाद यह किस्म वर्ष 2018-19 से रेड रॉट (लाल सड़न) रोग से प्रभावित होने लगी थी। गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग विभाग उ.प्र. सुधार उपायों के साथ-साथ बीज बदलाव भी शुरू कर दी थी। नवीन गन्ना किस्मों यथा को.शा.. 13235, को. लख 14201, को.शा. 17201, को. 15023, को 98014, को. शा.. 8436, एवं को.शा. 08272 आदि को जारी कर शनैः शनैः बीज प्रतिस्थापन प्रारम्भ कर दिया था।

भारत सरकार की राष्ट्रीय कृषि विकास योजना एवं उ.प्र. सरकार भी जिला योजना के अन्तर्गत संचालित आधार एवं प्राथमिक पौधशालाओं में को. 0238 के स्थान पर नवीन जारी किस्मों के बीज को प्राथमिकता दी गयी। परन्तु जिन परिणामों की अपेक्षा थी वह प्राप्त नहीं हुए जिसका प्रमुख कारण गन्ना उत्पादकों का को. 0238 को विस्थापित करने में इच्छा शक्ति की कमी एवं चीनी मिलो की केवल अधिकतम चीनी परता प्राप्त करने की अदूरदर्शी रणनीति थी। यद्यपि इसका मूल्य दोनो पक्षों को चुकाना पड़ा। रेड रॉट से जहां एक ओर खेत के खेत नष्ट हो गये वहीं उत्पादकता मे अप्रत्याशित कमी देखी गयी।

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि यदि को. 0238 के मोह को चीनी मिलें और गन्ना उत्पादको द्वारा नही छोड़ा गया तो जर्जर होती किस्ग चीनी उद्योग को भी जर्जर अवस्था में पहुंचा सकती है। अता इस वाद विवाद कि को. 0238 का प्रभावी विकल्प नहीं हैं और नवीन गन्ना किरम में को, 0238 की परिकल्पना करना न तो तर्कसंगल है और न ही व्यवहारिक है। हॉ इतना अवश्य है कि समय की मांग के अनुरूप को. 0238 किस्म के उत्पादन को कुछ वर्षों तक विराम दिया जाए। पदय प्रजनन की अनेक विधाओं यथा क्रिय क्रास, बैंक क्रास की मदद लेकर इसे तब तक खेतों में पुनः वापस लाने से परहेज किया जाये जब तक कि को. 0238 में रेड रॉट समाप्त न हो जाये, तब तक को.शा. 13235, को. लख 14201, को. शा. 17201, को. 15023, को. 98014, को. शा. 8436, एवं को. शा.08272 को ही अधिकतर क्षेत्रफल में उत्पादन किया जाये।

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