यदि गन्ने की खेती परंपरागत विधियों को छोड़कर वैज्ञानिक तरीकों से की जाए तो किसानों के लिए बेहद ही फायदेमंद होती है। उत्तर प्रदेश गन्ना शोध संस्थान के प्रसार अधिकारी डॉ. संजीव पाठक ने बताया कि डॉ. संजीव पाठक गन्ने की फसल किसानों के लिए बेहद भरोसेमंद फसल है। अगर किसान गन्ने की खेती परंपरागत विधि को छोड़कर ट्रेंच विधि से करें तो गन्ने की फसल को तैयार करने में कम लागत आती है। पानी की भी बचत होती है। इसके अलावा किसानों को अच्छा उत्पादन मिलता है। जिससे किसानों की आय में इजाफा होता है।परंपरागत तरीके से गने की खेती करने के लिए 90 सेंटीमीटर पर कुड़ खोदे जाते हैं। तीन आंख के टुकड़े से गन्ने की बुवाई की जाती है जिससे जमाव बेहद कम रहता है। 30 प्रतिशत से 40 प्रतिशत जमाव ही हो पाता है। परंपरागत विधि से गन्ने की खेती करने में फुटाव भी कम होता है। करीब 40 प्रतिशत कल्ले गन्ने में तब्दील होते हैं जिसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है। इस विधि से गन्ने की खेती करने में पूरे खेत में सिंचाई करनी होती है तो पानी की खपत भी ज्यादा होती है। परंपरागत विधि से गन्ने की बुवाई करने के लिए 60 से 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बीज की आवश्यकता होती है। परंपरागत तरीके से गन्ने की खेती करने से 600 से 700 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गन्ने का उत्पादन मिलता है।
लाल सड़न को रोकेगा ‘अंकुश’
गन्ने की बुवाई के दौरान अगर जरूरी उपाय कर लिए जाएं तो गन्ने की फसल को रेड रॉट से काफी हद तक बचाया जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जैविक उत्पाद डॉ. सुनील विश्वकर्मा अंकुश की मदद से फसल को गन्ना कैंसर से बचाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश गन्ना शोध संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. सुनील कुमार विश्वकर्मा ने बताया कि गन्ने की फसल में लगने वाला लाल सड़न की रोकथाम बुवाई के समय ही जरूरी है क्योंकि एक बार फसल की बुवाई के बाद अगर फसल में लाल सडन रोग आ जाता है तो उसकी रोकथाम नहीं की जा सकती, फिर गन्ने की फसल का खराब होना तय है। ये रोग भूमि जनित और बीज जनित है। ऐसे में जरूरी है कि बुवाई से पहले मृदा शोध के साथ-साथ बीज चयन का भी विशेष तौर पर ध्यान रखें।
जैविक उत्पाद रोग पर लगाएगा अंकुश
अंकुश (Ankush)
शोध संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा अंकुश नाम का जैविक कल्चर तैयार किया गया है। यह गन्ने में लगने वाले लाल सइन रोग यानी गन्ना कैंसर को रोकने में काफी हद तक मददगार है। अंकुश कल्चर, जिसमें ट्राइकोडर्मा को फफूंद डालकर तैयार किया गया है। यह गन्ने के लाल सड़न ही नहीं बल्कि अन्य फसलों में भी मिट्टी जनित रोगों की रोकथाम के लिए बेहद ही उपयोगी है। इन दिनों बसंत कालीन गन्ने की बुवाई हो रही है। खेत तैयार करते समय खेत की अंतिम जुताई के दौरान किसान अंकुश का इस्तेमाल कर सकते हैं। किसान इसको 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर किसान चाहें तो वह 15 से 20 किलो प्रति हेक्टेयर भी डाल सकते हैं। अंकुश के ज्यादा मात्रा का उपयोग करने से किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होता। डॉ सुनील कुमार विश्वकर्मा ने बताया कि किसान गोबर की सड़ी हुई खाद या फिर मिट्टी में अंकुश को मिलाकर पूरे खेत में बिखेर दें और खेत की जुताई कर गन्ने की फसल की बुवाई के लिए खेत को तैयार कर लें। 1 किलो अंकुश की कीमत 56 रुपए निर्धारित की गई है। किसान किसी भी कार्य दिवस में गन्ना शोध संस्थान जाकर इसे खरीद सकते हैं।