बाराबंकी जिला में इस वर्ष गन्ना की शरदकालीन बुवाई 1349 हेक्टेयर क्षेत्रफल पर लक्षित है। उपर्युक्त सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि ट्रेंच विधि व सहफसली खेती (गन्ने के साथ चना, मटर, मसूर, आलू, सरसों, लाही, लहसुन, प्याज इत्यादि) से प्रदेश सरकार कृषकों की आय में वृद्धि करने की अवधारणा को साकार करना चाहती है। इस सन्दर्भ में आयोजित की जा रही किसान गोष्ठियों, प्रदर्शनी तथा समूह चर्चा के माध्यम से कृषकों को सुझाव दिया जाता है। धान व खरीफ की अन्य फसलों की कटाई के पश्चात् खाली हुए खेतों में उपयुक्त नमी पर मिट्टी पलटने वाले/मेस्टन हल (सहकारी गन्ना विकास समिति पर उपलब्ध) से गहरी जुताई करना चाहिए। इससे खरपतवार खेत में दबकर जैविक खाद में परिवर्तित हो जाते हैं और मिट्टी में छिपे कीट (सफेद गिडार, दीमक एवं अन्य बेधक कीटों के प्यूपा आदि) व रोगाणु ऊपर आकर नष्ट हो जाते हैं। जुताई के तुरन्त बाद किसान पाटा अवश्य लगायें ताकि नमी सुरक्षित रहे। इसके पश्चात 10- 15 टन कम्पोस्ट/गोबर की अच्छी अपघटित खाद एवं एन पी के कन्र्सोटिया (जैव उर्वरक) 5 ली. प्रति हेक्टेयर खेत में डालकर हैरो/कल्टीवेटर से एक-दो जुताई करके पाटा लगाकर समतल कर लें।
किसान उन्नतशील प्रजातियों के गन्ना को शीघ्र लगायें एवं मध्य-देर से पकने वाली गन्ना प्रजातियों के बीच आवश्यक संतुलन रखें। शीघ्र प्रजातियों की आपूर्ति जल्दी होने से जहाँ एक ओर कृषक गेहूँ की फसल समय से बोकर गन्ना के पश्चात् गेहूँ का भी अधिक उत्पादन ले सकेंगे, वहीं दूसरी ओर चीनी मिलों के चीनी परता में भी वृद्धि से मिलों एवं अन्ततः कृषकों को भी आर्थिक लाभ होगा।
बीज का चयन
गन्ना की अधिक पैदावार के लिए स्वस्थ, नीरोग, उत्तम गुणवत्ता वाले बीज का चयन अति आवश्यक है। गन्ना बीज की आयु 8- 10 महीने की होनी चाहिए। गन्ना का ऊपरी एक तिहाई से आधा भाग बुवाई हेतु सर्वोत्तम होता है। इस भाग में ग्लूकोज (सरल शर्करा/मोनो सैकेराइड) की अधिकता एवं कीट बीमारियों की न्यूनता होने के कारण जमाव अधिक एवं फसल स्वस्थ होती है। नीचे के शेष भाग में शर्करा (डाई सैकेराइड/जटिल शर्करा) अधिक होने के कारण जमाव कम होता है। इस भाग को मिल में आपूर्ति करें। जिस खेत से बीज लेना हो, उसमें एक सप्ताह पूर्व हल्की सिंचाई करके चार किग्रा. यूरिया प्रति बीघा प्रयोग करें, ताकि ग्लूकोज की मात्रा अधिक बनी रहे। बीज फसल पूर्णतः स्वस्थ होनी चाहिए किसी एक क्लम्प (झुण्ड) में यदि एक भी गन्ना रोग एवं कीटों से ग्रस्त हो, तो उस झुण्ड से बीज नहीं लेना चाहिए। बीज वाले गन्ना में नमी की मात्रा गन्ना के वजन का
न्यूनतम 65 प्रतिशत होनी चाहिए। बीजोपचार
बीज गन्ना के टुकड़ों को एम एच ए टी या ऊष्ण जल (54 से०ग्रे०) से लगभग 1-2 घंटे तक उपचारित करने से बीज जनित रोग की रोकथाम की जा सकती है। लाल सड़न, कण्डुआ (स्मट) एवं उकठा रोग की रोकथाम हेतु बाविस्टीन (कार्बेन्डाजिम) का 0.1 प्रतिशत घोल अथवा 112 ग्राम दवा 112 लीटर पानी में घोल बनाकर उसमें 5 से 10 मिनट तक बीज गन्ना के टुकडे उपचारित कर बुवाई करनी चाहिए अथवा थियोफेनेट मिथाइल 70 डब्लूपी से बीज एवं भूमि उपचार करना चाहिए।
भूमि उपचार
मृदा जनित रोगकारक फफूंदी से बचाव हेतु ट्राइकोडर्मा 5 किग्रा. प्रति हे. की दर से अंतिम जुताई के समय खेत में भली भाँति मिलाना चाहिये। कीटों से बचाव हेतु फिफ्रोनिल 40 प्रतिशत इमिडाक्लोरपिड 40 प्रतिशत @ 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से बीज/भूमि उपत्चार करें।
खाद एवं उर्वरक
गन्ना की अच्छी पैदावार हेतु प्रति हेक्टेयर 150-180 किग्रा. नाइट्रोजन, 60 किग्रा. फास्फोरस, 40 किग्रा. पोटाश एवं 25 किग्रा. जिंक सल्फेट की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा एवं फास्फोरस, पोटाश व जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन की शेष मात्रा दो बार में ब्यात अवस्था एवं जून के अन्तिम सप्ताह में खड़ी फसल में पर्णीय छिड़काव के रूप में देने से अधिक लाभ होता है।