पराली आज के समय में किसानों के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है. इसके सही तरीके से निपटान में किसानों की लागत बढ़ जाती है. ऐसे में वे इसे जलाना पसंद करते हैं, लेकिन जलाने पर सरकार कार्रवाई करती है. यूपी के हापुड़ में इससे बचने के लिए किसानों को अब विकल्प मिल गया है. वे अपनी पराली बायोमास बिक्रेट (ईंधन) बनाने वाली कंपनी को बेच सकते हैं.
देश के कई राज्यों में धान की पराली को किसान खेतों में ही जला रहे हैं. पराली का सही तरीके से निपटान करने में किसानों को काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं. छोटे किसान इसका आर्थिक बोझ नहीं उठा पाते, जिसके चलते वे उन्हें जलाने का शॉर्टकट अपनाते हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है. इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में किसानों को पराली का अच्छा समाधान मिल गया है. यहां के किसान फसल से निकलने वाली पराली और गन्ने की पत्तियों को बायोमास ब्रिकेट (ईंधन) के रूप में दो से तीन रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेच रहे हैं.
पर्यावरण को बचाना मुख्य उद्देश्य
इस पहल से किसान अपने खेतों में पराली जलाने से बचेंगे और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा. इसके अलावा पराली जलाने पर होने वाली कानूनी कार्रवाई से भी बचेंगे. बायोमास ब्रिकेट बनाने वाली फैक्ट्री के निदेशक वैभव गर्ग ने पराली जलाने की समस्या के बारे में न्यूज एजेंसी एएनआई से बात की. उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य देश को प्रदूषण मुक्त बनाना है. अभी पराली जलाने की समस्या काफी बढ़ रही है, खासकर पंजाब और उत्तर प्रदेश में ये समस्या देखने को मिल रही है. जलाने के बजाय, हम इसे किसानों से खरीदकर फिर इससे बायोमास ब्रिकेट बनाते हैं.
NCR और हिमाचल में सप्लाई
वैभव ने बताया कि निजी और सरकारी दोनों उद्योग इन ब्रिकेट का इस्तेमाल करते हैं. उनकी फैक्ट्री दिल्ली एनसीआर और आसपास के इलाकों में हजारों टन सामग्री की आपूर्ति करती है और कुछ हिमाचल प्रदेश को भी भेजती है. उन्होंने किसानों से अपील की है कि वे उन्हें ज्यादा से ज्यादा पराली भेजें. ऐसा होने पर वे उत्पादन और बढ़ा सकेंगे, जिससे पर्यावरण की रक्षा में मदद होगी. वे अभी नोएडा, गाजियाबाद, बहराइच सहित कई जगहों पर ब्रिकेट सप्लाई करते हैं. वे हिमाचल प्रदेश को भी सामग्री भेज चुके हैं.
ईंधन का काम करता है बायोमास ब्रिकेट
फैक्ट्री के मैनेजर मुकेश गर्ग ने बताया कि उन्होंने इस समस्या को दूर करने के लिए 2011 में यह प्लांट शुरू किया था. हम गन्ने की पत्तियों और पराली को कुचलकर बायोमास ब्रिकेट बनाते हैं, जिसका उपयोग बॉयलर उद्योग में ईंधन के रूप में किया जाता है. इस प्रक्रिया से कोई प्रदूषण नहीं होता है.
हम किसानों से दो रुपये प्रति किलोग्राम पराली और तीन रुपये प्रति किलोग्राम गन्ने की पत्तियां खरीद रहे हैं. हमने इस मुद्दे पर प्रशासन को भी जागरूक किया है, लेकिन हमें अभी तक उनसे कोई सहायता नहीं मिली है. हर साल किसानों को पराली और गन्ने की पत्तियों को जलाने के लिए कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ता है. अब वे इन सामग्रियों को जलाने से बच सकते हैं और साथ ही उनकी बिक्री से लाभ कमा सकते हैं.