अनाज एथेनॉल मैन्युफैक्चरर्स स् ा ा े ा f स् ा ए श् ा न् ा (जीईएमए) ने देश में मक्का उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए ‘मक्का उगाओ’ जागरूकता अभियान शुरू किया है। केंद्र सरकार ने देश में मक्का उत्पादन पर विशेष ध्यान दिया है, जिसका उपयोग अनाज आधारित एथेनॉल प्लांट्स से उच्च एथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए फीडस्टॉक के रूप में किया जाएगा। एसोसिएशन का कहना है कि अभियान का मुख्य उद्देश्य खाद्यान्न से एथेनॉल का उत्पादन करने वाले अपने ७० से अधिक सदस्यों के लिए जागरूकता पैदा करना है।
अभियान के प्रेरक उपकरणों में से एक में डिजिटल सामग्री निर्माण शामिल है, जिसे सोशल मीडिया चैनलों- यूट्यूब, इंस्टाग्राम आदि पर डाला जा रहा है। अभियान के एक भाग के रूप में, सदस्य कारखानों से समाचार पत्र विज्ञापन और बैनर आदि जारी करने का अनुरोध किया रहा है।
जीईएमए की संयुक्त सचिव अरुशी जैन ने कहा कि एसोसिएशन के सदस्य कारखाने अभियान का प्रचार करने के लिए चैनल भागीदारों के साथ काम करेंगे। जीईएमए ने सदस्यों से बीज कंपनियों के साथ टीम बनाने का आग्रह किया है,जिनके पास इसमें विशेषज्ञता है। वे इस अभियान को बढ़ावा देने के लिए किसानों को शामिल करेंगे और उनके साथ मिलकर काम करेंगे। जैन ने कहा कि गांवों में ‘नुक्कड़’ कार्यशाला जैसे कार्यक्रमों की योजना बनाई जा रही है। अभियान मेंकृषिविज्ञानी, उर्वरक/कीटनाशक कंपनियां, भंडारण और रसद सेवा प्रदाता,
व्यापार नेटवर्क और उपभोक्ता शामिल होंगे।
उन्होंने कहा कि मक्का ख़रीफ़ टोकरी का एक हिस्सा है जो हर साल मई और जून के दौरान मुख्य रूप से बोया जाता है। इसलिए २०२४ के बुआई सीज़न पर ध्यान आकर्षित करने के लिए अभी से प्रचार शुरू कर दिया गया है। हालाँकि, यह साल भर चलने वाला अभियान होगा। एक बार मक्के का उत्पादन बढ़ जाए, तो कार्यक्रम में मक्के की अधिक उपज देने वाली स्मों का अनुसंधान और विकास शामिल होगा। देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन में मक्के की हिस्सेदारी मात्र १० प्रतिशत है। जानवरों के लिए गुणवत्तापूर्ण चारा होने के साथ-साथ, मक्का हजारों औद्योगिक उत्पादों के लिए एक महत्वपूर्ण कच्चा माल है जिसमें स्टार्च, तेल, प्रोटीन, मादक पेय, खाद्य मिठास, दवा, कॉस्मेटिक, फिल्म, कपड़ा, गोंद, पैकेज और कागज उद्योग आदि शामिल हैं। जैन ने कहा कि मक्का एक वर्षा आधारित फसल है, जिसकी खेती के दौरान कम भूजल की आवश्यकता होती है। यह एक आवश्यक औद्योगिक फसल भी है, जो एथेनॉल उत्पादन का एक दााोत भी होगी। वर्तमान में मक्का उच्च एमएसपी पर बिक रहा है, जिससे किसान को अच्छा लाभ मिल रहा है। ऐसे कई कारणों से हमें लगता है कि मक्के का उत्पादन कई गुना बढ़ना चाहिए और इसलिए यह अभियान है।
मक्का : रोग, लक्षण और रोकने के उपाय
भारत में मक्का की खेती मुख्य रूप से खरीफ और रबी सीजन में की जाती है। मक्का को ‘अनाज की रानी’ के रूप में भी पहचाना जाता है। मक्का विश्व में सबसे व्यापक रूप से उगाई जाने वाली फसल है। मक्का न सिर्फ इंसानों के खाने के काम आ रही है बल्कि पोल्ट्री सेक्टर में इसकी खूब खपत होती है। अब तो यह एक एनर्जी क्रॉप भी बन चुकी है, क्योंकि इससे एथेनॉल तैयार हो रहा है। इतने फायदों के बाद भी इसकी खेती में थोड़ी सी गड़बड़ी से इसके किसानों को नुकसान भी उठाना पड़ता है। मक्के की फसल पर कई बार कुछ ऐसे रोग लग जाते हैं जिससे किसानों का बड़ा नुकसान हो जाता है। फ्यूजेरियम तना गलन रोग को मक्का का सबसे सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है। इससे उपज में १० से ४२ प्रतिशत तक का नुकसान होने की संभावना रहती है। यही नहीं कुछ क्षेत्रों में १०० प्रतिशत तक भी नुकसान हो सकता है। इस रोग के लिए २६ से ३७ डिग्री सेल्सियस तापमान बहुत ही अनुकूल होता है। ना सड़न मक्का की फसल में लगने वाला एक गंभीर रोग है।
फ्यूजेरियम के लक्षण
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक इस रोग से पौधे की पत्तियां स्वस्थ हरे रंग से हल्के हरे रंग में बदल जाती हैं और निचला डंठल पीला हो जाता है। पौधों की जड़ों और निचली गांठों पर इसके लक्षण रोग की प्रमुख पहचान हैं। जब पौधों के डंठल को विभाजित किया जाता है, तो आंतरिक डंठल हल्के गुलाबी रंग का दिखता है, लेकिन डंठल में या उस पर काले धब्बे, कवक के कारण नहीं होते हैं। निचोड़ने पर डंठल स्पंजी या गद्देदार लगते हैं और निचली गांठ को आसानी से कुचला जा सकता है।
कैसे करे मैनेजमेंट
पिछली फसल के अवशेषों को पूरी तरह से नष्ट करना और गहरी जुताई करना लाभकारी होता है। फसलचक्र अपनाएं, नाइट्रोजन की कम मात्रा तथा पोटेशियम की अधिक मात्रा के साथ उर्वरकों की संतुलित मात्रा का प्रयोग करें।