मक्के को एथेनॉल के लिए उपयोग में लाने का सबसे बड़ा प्रभाव पोल्ट्री उद्योग पर पड़ा है, जो इस अनाज का उपयोग बलराम यादव पोल्ट्री आहार के रूप में करता है। एथेनॉल के लिए उपयोग किए जाने से पोल्ट्री फीड की लागत बढ़ गई है। हालाँकि, इसका असर कई अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ा है। इसने पोल्ट्री फीड और खाना पकाने के तेलों की कीमतों को बढ़ा दिया है और उपभोक्ताओं की जेबों तथा तिलहन किसानों के मुनाफे पर असर डाला है। एथेनॉल कार्यक्रम ने मक्का आयात में वृद्धि और चीनी उद्योग के लिए राजस्व में गिरावट जैसे परिणामों को जन्म दिया है।
जैव ईंधन का उत्पादन करने के लिए मक्का को किण्वित करने का निर्णय लेने से पहले, यह चिकन का पसंदीदा भोजन था। भारत का पोल्ट्री क्षेत्र देश में उत्पादित मक्का का 60 प्रतिशत उपभोग करता है, जबकि शेष का उपयोग मुख्य रूप से पशुओं के चारे, बीयर, व्हिस्की निर्माण और स्टार्च निर्माताओं द्वारा किया जाता है। ईटी से बातचीत में वेंकटेश्वर हैचरीज़ के महाप्रबंधक (दक्षिण), डॉ केजी आनंद, कहते हैं, ‘पोल्ट्री उद्योग को मक्के की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि एथेनॉल के लिए अनाज का उपयोग 2022-23 में 1 मिलियन टन (नवंबर से अक्टूबर तक) से बढ़कर 2023-24 में 7 मिलियन टन हो गया है और 2024-25 में 13 मिलियन टन तक बढ़ने का अनुमान है।’ मांग बढ़ने के साथ ही मक्के की कीमतें भी बढ़ गई हैं। मक्के की कीमतें सालाना 20 प्रतिशत बढ़कर 2024 में औसतन 26 रुपये प्रति किलो हो गई हैं।
साल 2022 में भारत ने एथिल अल्कोहल के लिए मक्के के उपयोग को प्रोत्साहित करना शुरू किया, ताकि चीनी आधारित एथेनॉल पर निर्भरता कम हो सके। देश के एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम (ईबीपी) में मक्का आधारित एथेनॉल की हिस्सेदारी 2021-22 में शून्य से बढ़कर 2023-24 में 40 प्रतिशत हो गई है और 2024-25 में 55 प्रतिशत से अधिक हो सकती है। मक्के के इस अचानक मोड़ के अनपेक्षित परिणाम हुए हैं
क्योंकि उत्पादन मांग के अनुरूप नहीं रहा है। सरकारी अनुमानों के अनुसार, 2023-24 में मक्के का उत्पादन 37.4 मिलियन टन था, जो 2022-23 में 38 मिलियन टन से कम है। अनुमान है कि इस साल मक्के का उत्पादन केवल 4 मिलियन टन बढ़कर 41.4 मिलियन टन हो जाएगा। मक्के से एथेनॉल बनाने से सिर्फ मुर्गी के चारे पर ही असर नहीं पड़ा है बल्कि इसका पशुओं के चारे और खाना पकाने के तेल की कीमतों पर भी असर पड़ा है।
खाद्य तेल उद्योग सोयाबीन, सरसों, कपास और मूंगफली जैसे तिलहनों को संसाधित करता है। इसे अपना राजस्व आंशिक रूप से तेल बेचने से और आंशिक रूप से अपशिष्ट, जिसे ऑयलमील अथवा खली कहा जाता है, को बेचने से मिलता है, ऑयल मील का उपयोग मवेशियों, मुर्गियों और मछलियों के चारे के रूप में किया जाता है। हालांकि, मक्के से एथेनॉल के बढ़ते उत्पादन के साथ, इस प्रक्रिया से निकलने वाले अपशिष्ट, जिसे डिस्टिलर के सूखे अनाज घुलनशील (डीडीजीएस) कहा
चीनी उद्योग पर भारी है मक्का
चीनी उद्योग भी चिंतित है। सरकार मक्का एथेनॉल को बढ़ावा देने के साथ, चीनी से एथेनॉल की मांग अपेक्षाओं के अनुसार नहीं बढ़ा रही है, जिससे इसके राजस्व पर असर पड़ रहा है। इस्मा के अध्यक्ष एम प्रभाकर राव कहते हैं, “चीनी उद्योग को एथेनॉल का 40 फीसदी से भी कम आवंटन और निर्यात बंद होने से चीनी की कीमतें कम हो रही हैं, जिससे किसानों को भुगतान और उद्योग में संकट पैदा हो रहा है।
जाता है, की भी कीमत बढ़ गई है। डीडीजीएस जिसका उपयोग मवेशियों के चारे में किया जाता है, अब सोयाबीन खली जैसे विभिन्न ऑयलमील की तुलना में लगभग आधी कीमत पर उपलब्ध है। गोदरेज एग्रोवेट के एमडी बलराम यादव के मुताबिक 27-32 प्रतिशत प्रोटीन और 7-9 प्रतिशत तेल सामग्री के साथ, मक्का डीडीजीएस बहुत प्रतिस्पर्धी है और मवेशियों के चारे की लागत को कम करने में मदद करता है। मक्का डीडीजीएस के कारण विभिन्न ऑयलमील की कीमतें दबाव में आ गई हैं।