आईओसी ने जुलाई-सितंबर 2025 तक जेट ईंधन में कम-से-कम 1 प्रतिशत संधारणीय विमानन ईंधन (एसएएफ) प्राप्त करने की योजना बनाई है, जो सरकार के 2027 के लक्ष्य से पहले है। आईओसी के अनुसंधान और विकास निदेशक आलोक शर्मा ने 23 अक्टूबर को इंडिया रिफाइनिंग समिट में कहा कि, आईओसी एसएएफ के लिए समर्पित प्लांट स्थापित करने की भी योजना बना रही है। भारत का लक्ष्य 2027 तक अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए जेट ईंधन में 1 प्रतिशत एसएएफ प्राप्त करना है, जो 2028 में दोगुना होकर 2 प्रतिशत हो जाएगा। दिल्ली ने शुरू में 2025 तक जेट ईंधन में 1 प्रतिशत एसएएफ मिश्रण करने का लक्ष्य रखा था, यह कहते हुए कि 2070 तक नेट जीरो प्राप्त करने के देश के प्रयासों के हिस्से के रूप में इसे प्राप्त करने के लिए उसे 140 मिलियन लीटर/वर्ष एसएएफ की आवश्यकता होगी। शर्मा ने कहा कि रिफाइनरी विस्तार उच्च मांग की उम्मीदों पर जेट ईंधन के उत्पादन का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
उन्होंने कहा कि अन्य उत्पादों की मांग स्थिर हो जाएगी, लेकिन जेट ईंधन की मांग बढ़ेगी। आईईए का मानना है कि जैव ईंधन को छोड़कर वैश्विक तेल की मांग 2050 में 93.1 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक गिर जाएगी। इसकी तुलना पिछले साल के विश्व ऊर्जा आउटलुक में 97.4 मिलियन बैरल प्रतिदिन से की गई थी, जिसका मुख्य कारण परिवहन, विशेष रूप से शिपिंग में पहले से कम तेल का उपयोग है। शर्मा ने कहा कि डीजल में 5 प्रतिशत एथेनॉल मिलाने की चर्चा होने के कारण एथेनॉल का महत्व बढ़ने की संभावना है। शर्मा ने कहा कि ज्यादातर एथेनॉल पहली पीढ़ी के प्लांट से आता है, जबकि दूसरी पीढ़ी के प्लांट फीड हैंडलिंग से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहे हैं, दूसरी पीढ़ी के बायो एथेनॉल का मतलब बायोमास जैसे गैर खाद्य संसाधनों से बना एथेनॉल है, जबकि पहली पीढ़ी का बायो एथेनॉल गन्ना और मकई जैसे खाद्य संसाधनों से बनाया जाता है।