पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश, उमंग अग्रवाल मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और महाराष्ट्र सहित 8 राज्यों के छोटे किसानों को कार्बन क्रेडिट के रूप में वित्तीय मदद दी जाएगी। किसान कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए सुझाई गई खेती विधियों को अपना रहे हैं और कार्बन प्रोजेक्ट से जुड़े हुए हैं। कृषि क्षेत्र से जुड़ी 4 कंपनियां 9 राज्यों में कार्बन क्रेडिट देने के लिए 10 हजार से अधिक किसानों के साथ काम कर रही हैं।
भारतीय बीज फर्म महिको और अमेरिकी फर्म इंडिगो के ज्वाइंट वेंचर ग्रो इंडिगो के कार्बन हेड उमंग अग्रवाल के अनुसार कार्बन स्टैंडर्ड वीरा प्रोटोकॉल के तहत पहले रिजेनरेटिव एग्रीकल्चर कार्बन प्रोग्राम का ऑडिट पूरा हो गया है। यह ग्लोबल वॉलंटरी ग्रीनहाउस गैस कम करने के लिए एक कार्यक्रम है। उमंग अग्रवाल ने फाइनेंशियल एक्सप्रेस को बताया कि वीरा स्टैंडर्ड के अनुसार सर्टिफिकेशन के आधार पर अगले कुछ महीनों में किसानों को कार्बन क्रेडिट दिए जाएंगे। कंपनी के पहले प्रोजेक्ट ने थर्ड पार्टी के ऑडिट को पूरा कर लिया है और अब क्रेडिट जारी करने के लिए ऑडिट वीरा के पास है।
75 5 फीसदी फीसदी रेवेन्यू किसान को मिलेगा
धान और गेहूं की खेती के लिए डीएसआर विधि को अपनाने वाले किसान कार्बन क्रेडिट प्रोजेक्ट पाने के लिए रजिस्ट्रेशन करते हैं। डीएसआर विधि में नर्सरी की बजाए सीधे बीज की बुवाई खेत में होती है, जिससे पानी की लागत घटती है और मिट्टी के जैविक बायोमास को बचाती है। उमंग अग्रवाल ने कहा कि किसानों से कार्बन क्रेडिट विमानन, खनन या उर्वरक निर्माता खरीद लेते हैं क्योंकि वे अपने कारोबार के चलते कार्बन उत्सर्जन को कम नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी कंपनी कार्बन क्रेडिट को किसानों से जुटाती है और इसे खरीदारों को बेचती है। क्रेडिट से हासिल रेवेन्यू का 75 फीसदी किसानों को वापस कर दिया जाता है।
9 राज्यों में 4 कंपनियों का प्रोजेक्ट
कृषि क्षेत्र में काम कर रहीं कंपनियां बायर, शेल, मित्सुबिशी और जेनजीरो ने धान किसानों को स्मार्ट खेती विधियों और डीएसआर विधि को अपनाने के लिए 9 राज्यों में अपने कार्बन क्रेडिट प्रोजेक्ट को बढ़ाने का फैसला किया है। प्रोजेक्ट में लगभग 8,500 हेक्टेयर भूमि जोड़ने का प्लान है। बीते 1 साल में इस प्रोजेक्ट ने कृषि से सालाना लगभग 100,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन उत्सर्जन में कमी की है। प्रोजेक्ट से 10,000 किसानों को लाभ पहुंचा है। यह किसान आंध्र प्रदेश, बिहार, हरियाणा, कर्नाटक, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में 25,000 हेक्टेयर से अधिक जमीन में खेती करते हैं।