भारतीय हेरिटेज एसोसिएशन ऑफ खांडसारी और ट्रेडिशनल स्वीटनर्स इंडस्ट्री (भक्ति) ने खांडसारी शुगर इंडस्ट्री के हितों की रक्षा को लेकर अपनी आवाज उठाई है। व्यापारियों का कहना है कि खांडसारी का निर्यात रुक जाएगा तो इसका व्यापार नहीं बचेगा। ऐसे में देश के छोटे गन्ना किसान भी नहीं बचेंगे।
खांडसारी का उत्पादन करने वाले व्यापारी अपने बिजनेस को लेकर बहुत जूझ रहे हैं। व्यापारियों का कहना है कि उन्हें खांडसारी के उत्पादन में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। खांडसारी एक तरह की कच्ची सफेद चीनी होती है जो कि बिना रिफाइन किए बाजार में बिकती है। व्यापारियों की यह चिंता ऐसे समय में सामने आई है जब इस्मा ने खांडसारी के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठाई है। खांडसारी उद्योग इस्मा की प्रतिबंध वाली मांग का विरोध कर रहा है।
अकेले उत्तर प्रदेश में लगभग 270-280 खांडसारी इकाइयां हैं, जिन्हें सालाना 100- 110 लाख टन गन्ने की जरूरत होती है, जबकि महाराष्ट्र की 10-15 इकाइयों का छोटा नेटवर्क लगभग 20-25 लाख टन गन्ने का उपयोग करता है। इस्मा के अनुसार, गन्ने के इस डायवर्जन ने पहले से चल रही मिलों पर दबाव डाला है, जिससे उन्हें चलाने और उसके लाभ पर असर पड़ा है।
इस्मा ने चिंता जाहिर की कि पिछले चीनी सीजन (अक्टूबर 2023 से अगस्त 2024) के दौरान, खांडसारी इकाइयों ने लगभग 2.4 लाख टन चीनी का निर्यात किया, जबकि अन्य चीनी प्रकारों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। एसोसिएशन का दावा है कि खांडसारी उत्पादक अक्सर किसानों को सरकार के एफआरपी से कम भुगतान करते हैं, जिससे किसानों को घाटा होता है।
छोटे किसानों के लिए महत्वपूर्ण है खांडसारी उद्योग
इस्मा ने हाल ही में डीजीएफटी से गन्ना सप्लाई पर चिंताओं का हवाला देते हुए खांडसारी चीनी पर निर्यात बैन लगाने का आग्रह किया। जवाब में भक्ति के महानिदेशक शशिकांत पंढरे ने बिजनेसलाइन’ को बताया कि खांडसारी मिलें उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के छोटे गन्ना किसानों की आजीविका में बड़ी भूमिका निभाती हैं, जिनमें से कई किसान तत्काल नकदी की जरूरतों के लिए खांडसारी उद्योग पर निर्भर हैं। किसानों की इस मांग को बड़ी मिलें पूरी नहीं कर सकती हैं। पंढरे ने कहा, ‘खांडसारी एक छोटा उद्योग है जो किसानों की सेवा करता है और इसे बचाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ये पारंपरिक मिलें अक्सर किसानों को सरकार की ओर से निर्धारित उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) से अधिक भुगतान करती हैं।
पंढरे ने एक्सपोर्ट बैन की मांग उठाने के लिए इस्मा की आलोचना की और इसे ‘अनुचित’ कहा। पंढेर ने जोर देकर कहा कि भक्ति डीजीएफटी अधिकारियों के साथ आगामी बैठकों में अपना रुख स्पष्ट करेंगे। इसके अलावा, एसोसिएशन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील करने की योजना बना रहा है, क्योंकि देश में सबसे अधिक खांडसारी कंपनियां यहां हैं।
भक्ति ने बताया कि इस्मा ने 2023-24 के फसल वर्ष में 5 लाख टन चीनी का निर्यात किया, लेकिन अब वह आधे से भी कम मात्रा के खांडसारी निर्यात का विरोध कर रहा है। एसोसिएशन ने इस्मा के रुख को गलत बताया। इस्मा अतिरिक्त 20 लाख टन चीनी निर्यात करने की अनुमति के लिए पैरवी भी कर रहा है। भक्ति का तर्क है कि खांडसारी गन्ने के उत्पादन का 1 प्रतिशत से भी कम उपयोग करती है, जबकि चीनी मिलें 75 प्रतिशत का उपयोग करती हैं।