मक्के की ऊंची कीमतों को लेकर चिंता जता रहे अखिल भारतीय स्टार्च निर्माता संघ (एआईएसएमए) ने भी सरकार से इस मुद्दे पर ध्यान देने का आग्रह किया है। संतोष सारंगी (अतिरिक्त सचिव और महानिदेशक, डीजीएफटी) को लिखे पत्र में एआईएसएमए ने मंत्रालय से मक्के पर आयात शुल्क को तत्काल शून्य प्रतिशत करने का आग्रह किया है।
एआईएसएमए ने अपने पत्र में कहा है कि भारत में स्टार्च उद्योग में लगभग 45 विनिर्माण सुविधाएं शामिल हैं, जो सालाना लगभग 70 लाख टन की खपत करती हैं। यह क्षेत्र खाद्य, दवा, चारा, कागज और रासायनिक उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति करने में महत्वपूर्ण है। हम सालाना 125 से अधिक देशों को लगभग 800,000 टन तैयार उत्पाद निर्यात करते हैं। हमारे उत्पाद लोगों के दैनिक जीवन में अपरिहार्य हैं। पत्र में कहा है कि पिछले एक साल में स्टार्च उद्योग को कच्चे माल की बढ़ती लागत और अंतिम उत्पादों और उप-उत्पादों की घटती कीमतों के कारण काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। स्टार्च उत्पादन के लिए प्राथमिक कच्चे माल मक्का की कीमत पूरे भारत में साल-दर- साल लगभग 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि मुख्य रूप से 2023 में मक्का उत्पादक राज्यों में सूखे और मक्का से जैव ईंधन (एथेनॉल) उत्पादन होने के कारण हुई है।
टीआरक्यू के तहत गैर-आनुवंशिक रूप संशोधित (गैर-जीएम) मक्का के हाल ही से में आयात पर जोर देते हुए, एआईएसएमए ने कहा कि भारत सरकार ने नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (नफेड) के माध्यम से गैर-आनुवंशिक रूप से संशोधित (nonGM) मक्का के आयात के लिए 500,000 मीट्रिक टन का टैरिफ दर कोटा (टीआरक्यू) आवंटित किया है। हालांकि, यह आयात 15 प्रतिशत शुल्क के अधीन है। वर्तमान में गैर-जीएम मक्का की अपर्याप्त वैश्विक आपूर्ति है।
आईआईएमआर के प्रयास से बढ़ा मक्के का रकबा
असम के किसानों में अब मक्के की खेती को लेकर दिलचस्पी बढ़ रही है। वहां धान का क्षेत्रफल घट रहा है और मक्का का क्षेत्रफल बढ़ रहा है। पिछले एक दशक से इस तरह का डॉ. हनुमान सहाय जाट ट्रेंड देखने को मिल रहा है। इसके पीछे कृषि वैज्ञानिकों की बड़ी मेहनत है। एथेनॉल उद्योगों के जलग्रहण क्षेत्र में मक्का उत्पादन में वृद्धि नामक प्रोजेक्ट के तहत यहां पर मक्का की खेती बढ़ाने के प्रयास चल रहे हैं। इसके तहत असम के 12 जिलों में काम किया जा रहा है, जिनमें धुबरी, कोकराझार, बोरझार, बरपेटा और ग्वालपाड़ा प्रमुख हैं।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेज रिसर्च (आईआईएमआर) के निदेशक डॉ. हनुमान सहाय जाट का कहना है कि मक्का खरीफ, रबी और जायद तीनों सीजन में होता है, लेकिन मुख्य तौर पर यह खरीफ सीजन की फसल है। असम में रबी सीजन में अधिक जमीन खाली रह जाती है जो कि 10 लाख हेक्टेयर से अधिक है। ऐसे में आईआईएमआर ने रबी सीजन में 360 हेक्टेयर में किसानों से मिलकर फार्म डेमोस्ट्रेशन लगाकर 2023-24 में 10 हजार टन उत्पादन हासिल किया है। आईआईएमआर के सीनियर साइंटिस्ट शंकर लाल जाट का कहना है कि असम में मक्के की खेती के अनुकूल मौसम और मिट्टी है। मक्के की खेती के लिए पर्याप्त बारिश होती है। इसलिए यहां के किसानों को इसकी खेती करना अधिक फायदेमंद है। असम में धान की खेती ज्यादा होती है, लेकिन अब धीरे-धीरे यहां पर मक्का की खेती को लेकर दिलचस्पी बढ़ रही है। कृषि मंत्रालय के अनुसार 2014-15 में असम में 0.28 लाख हेक्टेयर में ही मक्का की खेती हो रही थी, जो 2023-24 के खरीफ सीजन में बढ़कर 0.63 लाख हेक्टेयर हो गई है। यहां धान का क्षेत्रफल घट गया है। वर्ष 2014-15 में असम में धान का क्षेत्रफल 20.79 लाख हेक्टेयर था जो 2023-24 में घटकर 19.42 लाख हेक्टेयर रह गया है। असम में एथेनॉल बनाने वाली अकेले एक कंपनी में 5 लाख टन मक्के की मांग है। इसके अलावा पशु आहार और पोल्ट्री फीड के लिए भी मक्के की बहुत मांग है। मक्का की मांग खाने-पीने की चीजों, पशु आहार, पोल्ट्री फीड और एथेनॉल के लिए भी है। इसलिए इसकी खेती किसानों के लिए फायदेमंद है। इसलिए आईआईएमआर असम सहित पूरे देश में मक्का उत्पादन बढ़ाने के लिए अभियान चला रहा है।