गन्ना की कटाई में श्रमिकों पर निर्भरता कम करने की कोशिश की जा रही है। नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज लिमिटेड (एनएफसीएसएफ) और नेशनल कोऑपरेटिव डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एनसीडीसी) ने आगामी पेराई सत्र से शुरू चीनी मिलों को हार्वेस्टर उपलब्ध कराने की योजना बनाई है। एनएफसीएसएफ के अध्यक्ष हर्षवर्धन पाटिल ने कहा कि एनएफसीएसएफ और एनसीडीसी संयुक्त रूप से अक्टूबर 2024 में शुरू होने वाले पेराई सत्र के लिए चीनी मिलों को हार्वेस्टर उपलब्ध कराने की योजना बना रहे हैं। गन्ना कटाई प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए महाराष्ट्र के कई ऐसे चीनी मिल हैं जो दूसरे राज्यों से भाड़े पर हार्वेस्टर मंगा रहे हैं। यह पिछले दो पेराई सीजन से चल रहा है। वेस्ट इंडियन शुगर मिल एसोसिएशन (विस्मा) के अनुसार मशीनों से गन्ने की कटाई करना जरूरी है इसलिए सभी चीनी मिल आने वाले पेराई सीजन के लिए अपनी कटाई क्षमता बढ़ाने पर काम कर रहे हैं।
केंद्र और राज्य सरकारों से बात की जा रही है साथ ही सरकारों से हार्वेस्टर्स के लिए सब्सिडी बढ़ाने के लिए कहा जा रहा है। हर्षवर्धन पाटिल ने सहकारिता मंत्री अमित शाह से अपने हालिया मुलाकात का जिक्र करते हुए कहा कि मंत्री ने चीनी उद्योग के लिए अगले दस साल का प्लान तैयार करने के लिए कहा है और एनएफसीएसएफ के लिए नीतियां ड्राफ्ट कर रही है।
अन्ना विश्वविद्यालय सेल्यूलोज एंजाइम शोध में करेगा सहयोग
अन्ना विश्वविद्यालय और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड के ग्रीन रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर (बेंगलुरू) ने सेल्यूलोजिक एथेनॉल (2जी एथेनॉल) निर्माण में उपयोग किए जाने वाले सेल्यूलेज एंजाइम उत्पादन के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। 2जी एथेनॉल ईंधन आयात को कम करने और ऊर्जा स्वतंत्रता को बढ़ाने में मदद करेगा। यह एथेनॉल मिश्रण लक्ष्य को बढ़ा सकता है, फसल जलाने की समस्या को कम कर सकता है और वायु प्रदूषण को कम कर सकता है। इससे न केवल स्वास्थ्य परिणामों में सुधार होगा बल्कि रोजगार भी पैदा होंगे और किसानों को अतिरिक्त राजस्व मिलेगा। एचपीसीएल ग्रीन आरएंडडी सेंटर ने बायोएथेनॉल के उत्पादन के लिए एचपी-एएसएपी और लिग्नोसेल्यूलोसिक बायोमास से बायोगैस का उत्पादन करने के लिए एचपी- आरएएमपी जैसी स्वदेशी तकनीकें विकसित की हैं। इन तकनीकों का पायलट पैमाने पर परीक्षण किया गया है, और देश भर में विभिन्न प्रदर्शन/वाणिज्यिक पैमाने के संयंत्रों की योजना बनाई जा रही है। केंद्र 2जी एथेनॉल उत्पादन के लिए इन-हाउस सेल्यूलेज एंजाइम भी विकसित कर रहा है, इसके अलावा माइक्रोबियल किण्वन के माध्यम से उत्पादित उच्च मूल्य मेटाबोलाइट्स के उत्पादन के लिए तकनीक विकसित कर रहा है।
द हिन्दू में प्रकाशित खबर के मुताबिक, विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग में एस. रामलिंगम और उनकी टीम ने चयनित फंगल स्ट्रेन का उपयोग करके सेल्यूलोज एंजाइम के बेहतर उत्पादन के लिए एक प्रक्रिया विकसित की है। विभाग एचपीसीएल के ग्रीन आरएंडडी सेंटर के साथ आगे की फाइन ट्यूनिंग और स्केल-अप के लिए नव विकसित प्रक्रिया को साझा करेगा। सहयोगी परियोजना में मोटे तौर पर एचपीजीआरडीसी में प्रक्रिया हस्तांतरण और जैवप्रक्रिया सुधार शामिल होगा। अन्ना विश्वविद्यालय भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (दिल्ली) के जैव रासायनिक इंजीनियरिंग और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्रोफेसर के. के. जे. मुखर्जी के साथ मिलकर ज. स्ट्रेन सुधार के लिए आगे आनुवंशिक हस्तक्षेप करेगा। परियोजना को शुरू में डीबीटी वर्चुअल एंजाइम सेंटर- लिग्नोसेल्यूलोसिक बायोमास के उपचार के लिए एंजाइम फॉर्मूलेशन के विकास के माध्यम से वित्त पोषित किया गया था।