ऐसे कई कारक हैं जो चीनी उद्योग की स्थिरता को प्रभावित करते हैं और अक्सर हम स्थिरता के तीन प्रो. नरेंद्र मोहन स्तंभों यानी नीति, उत्पादकता और उत्पाद के बारे में बात करते हैं। इनमें से प्रत्येक महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमें एक मजबूत और दीर्घकालिक नीतिगत ढांचे की आवश्यकता है। खेत से लेकर कारखाने तक उत्पादकता को बढ़ाना इसके लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा औद्योगिक उत्पाद पोर्टफोलियो को समृद्ध करना और स्थिरता प्राप्त करने के लिए विविध राजस्व के रास्ते तैयार करना महत्वपूर्ण होगा। प्रो. नरेंद्र मोहन (पूर्व निदेशक, राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर) ने कहा कि आज हम आर्थिक और पर्यावरणीय दोनों मोचर्चों पर काम करने वाले टिकाऊ चीनी उद्योग की तलाश कर रहे हैं, जो हमारे मूल्यवान किसानों सहित सभी हितधारकों के हितों की रक्षा करता हो। एक सवाल हो सकता है कि क्या विविधीकरण एक विकल्प या आवश्यकता हो सकती है। मेरे दृष्टिकोण से आज चीनी उद्योग के लिए विविधीकरण एक विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता है। प्रो. मोहन ने कहा कि भारतीय चीनी उद्योग एक उदाहरण है कि कैसे विविधीकरण वित्तीय स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और इसे टिकाऊ बनाने में मदद कर सकता है। कुछ दशक पहले तक भारतीय चीनी उद्योग केवल चीनी से होने वाले राजस्व पर ही निर्भर था क्योंकि यह उद्योग का एकमात्र उत्पाद था। ऐसे में चीनी उत्पादन और चीनी की कीमतों में उतार- चढ़ाव हर कुछ वर्षों के बाद चीनी उद्योग की लाभप्रदता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता था। विशेष रूप से अधिशेष चीनी उत्पादन और निर्यात के मुद्दों के मामले में स्थिति चिंताजनक हुआ करती थी। इस उद्योग को लाभदायक और टिकाऊ बनाने के लिए दो मोर्चों पर काम करना आवश्यक है। चीनी की मांग-आपूर्ति परिदृश्य में असंतुलन से संबंधित मुद्दों का समाधान करना और उप- उत्पादों से अधिक मूल्य वर्धित उत्पाद विकसित करना ताकि अधिक राजस्व के विकल्प हों। पिछले कुछ दशकों में भारतीय चीनी उद्योग की यात्रा विविधीकरण के माध्यम से परिवर्तन की यात्रा है और अब
बेहतर स्थिति में पहुंच रहा है। चीनी बनाने वाले एकल उत्पाद कारखाने से चीनी + बिजली, फिर चीनी बिजली + एथेनॉल बनाते थे, फिर अब ये एनर्जी हब के रूप में काम कर रहे हैं जहां विद्युत, एथेनॉल और सीबीजी का उत्पादन किया जा रहा है। चीनी उद्योग अब इससे भी आगे बढ़कर हाइड्रोजन, एविएशन फ्यूल और अन्य जैव उत्पाद तैयार कर रहे हैं। भारतीय चीनी उद्योग ने अपनी चीनी की गुणवत्ता में भी विविधता ला दी है और अब यह विभिन्न क्षेत्रों के लिए आवश्यक विशेष चीनी सहित विभिन्न गुणवत्ता की चीनी का उत्पादन करता है। भविष्य में स्वास्थ्यवर्धक और पौष्टिक चीनी की मांग बढ़ेगी और कीमत भी प्रीमियम में प्राप्त होगा।
काम करने का एक अन्य क्षेत्र कचरे को धन में बदलना है। पहले से ही भारतीय चीनी उद्योग ने कार्बन डाइऑक्साइड को इकट्ठा करने और इसे कई उद्देश्यों के लिए उपयोग करने और शीरा आधारित डिस्टिलरियों में बॉयलरों के स्पेंट वॉश या राख से पोटाश के कई उदाहरण बनाए हैं। भारतीय चीनी उद्योग द्वारा पहले से ही उठाए गए इस कदम के साथ, हमें खेत से लेकर कारखाने तक ताजे पानी के उपयोग को कम करने और किसी भी रूप में उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए प्रयास करने होंगे। इसलिए, प्रतिस्पर्धी, व्यवहार्य और टिकाऊ होने के लिए, विविधीकरण महत्वपूर्ण है और जहाँ प्रौद्योगिकी प्रमुख भूमिका निभाने जा रही है। हमें यह देखना होगा कि यह एक ऐसा उद्योग बन जाए जो साल में 365 दिन काम करे, न कि कुछ महीनों के लिए।
प्रो. नरेंद्र मोहन