तेलंगाना के वारंगल में वैज्ञानिकों ने एक नए प्रकार के ज्वार की खेती पर ध्यान केंद्रित किया है। इस ज्वार में भरपूर शर्करा और एथेनॉल होता है, जो पेट्रोल में मिलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। सरकार पेट्रोल के आयात को कम करने के लिए इथेनॉल मिश्रण पर जोर दे रही है और पेट्रोल में इसे 20 प्रतिशत तक मिलाने का लक्ष्य लेकर काम कर रही है। भारत में हुए जी-20 ग्लोबल समिट में पीएम मोदी ने मोटे अनाज के इस्तेमाल पर जोर दिया और विदेशी महमानों को भी मोटा अनाज परोसा गया। इस मोटे अनाज में ज्वार का भी नाम आता है। लोग अपने आहार में सफेद और हरे ज्वार का उपयोग करते हैं, क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। अब वैज्ञानिकों ने देश भर में एक और प्रकार की ज्वार की फसल की खेती पर ध्यान केंद्रित किया है। यह मीठा ज्वार हमारे खाने के लिए नहीं है, क्योंकि इसमें भरपूर मात्रा में एथेनॉल होता है, इसलिए इसे पेट्रोल में मिलाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
गन्ना क्षेत्रफल दिन-ब-दिन घटते जाने के कारण केंद्र सरकार अपेक्षित लक्ष्य पूरा नहीं कर पा रही है। इसके साथ ही उन्होंने एथेनॉल उत्पादन के वैकल्पिक तरीकों पर ध्यान केंद्रित किया। यह महसूस करते हुए कि मीठी ज्वार की फसल एथेनॉल से समृद्ध है, उन्होंने ‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के सहयोग से इसके उत्पादन पर ध्यान केंद्रित किया।
आईसीएआर से संबद्ध भारतीय लघु अनाज अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद देश भर में बीज उत्पादन के लिए मीठी ज्वार की खेती पर शोध कर रहा है। इसके एक हिस्से के रूप में वारंगल क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान स्टेशन (आरएआरएस) में, दो एकड़ में ‘जयकर रसीला’ किस्म की ज्वार की खेती की गई और यह कटाई के चरण में पहुंच गई। देशभर में इस फसल की खेती का नेतृत्व कर रहे आईआईएमआर के वैज्ञानिक डॉ. एवी उमाकांत ने अपनी टीम के साथ बुधवार को वारंगल में उगाए गए ज्वार का निरीक्षण किया।